पदम प्रयोजन
प्रति वर्ष दिए जाने वाले प्रमुख राष्ट्रीय पुरस्कारों में पदम पुरस्कारों का अपना महत्व है किन्तु लगातार पदम पुरस्कारों के प्राप्त करने वालों कि बढती जा रही संख्या और उनके कार्य छेत्रों में उनकी उपलब्धियां (जिनके आधार पर इन पुरस्कारों हेतु उन्हें नामांकित किया गया ) विवाद का कारण बनती जा रही हैं .
यदि आप इस वर्ष कि भांति विगत वर्षों के भी समाचार पत्रों को देखें तो यह बात स्वतः स्पस्ट हो जाती है कि ऐसे पुरस्कार मात्र प्रतिभा एवं उपलब्धियों के आधार पर नहीं बल्कि सरकार कि सुविधा के अनुसार दिए जाते है जिनमे तुष्टिकरण करना प्रमुख रूप से शामिल होता है .
हाल में दिए गए पुरस्कारों में संत सिंह चटवाल का विवाद प्रमुख है जिन्हें पुरस्कार न दिए जाने के लिए भारतीय दूतावास पूर्व में ही कह चुका था किन्तु उन्हें भारतीय सरकार कि ओर से पुरस्कार प्राप्त हुए .
ऐसा नहीं कि यह लेख भारतीय प्रतिभाओं कि उपेक्षा कर रहा है या उन्हें पुरस्कार योग्य नहीं मान रहा है किन्तु यह अवश्य कह रहा है कि पुरस्कारों कि गरिमा का ध्यान रखते हुए ही उन्हें दिया जाना चाहिए क्योंकि इनसे संपूर्ण देश की गरिमा जुडी होती है . पुरस्कारों की सूची बहुत लम्बी न बनाकर संछिप्त और निष्पक्ष होनी चाहिए जिस से देश के लोगों में पुरस्कार प्राप्त व्यक्तियों का सम्मान बना रहे और वे अपने नाम में गर्व से पदम नाम का प्रयोग कर सकें .
(Published with dainik Jagran, Gorakhpur Edition)
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