कोपेनहेगेन और हम
दुनिया भर की सरकारों,संस्थाओं और लोगो के निरंतर प्रयास के बाद भी पर्यावरण जैसे संवेदनशील मुद्दे पर विकसित देशों की आँखे अभी भी बंद ही हैं ऐसा हाल ही में सम्पन्न कोपेनहेगेन सम्मलेन से मालूम पड़ता है. विकसित देशों द्वारा लगातार कार्बन उत्सर्जन कम करने का दबाव विकास शील देशों पे थोपा जाना और अपने कार्बोन उत्सर्जन में कोई कमी न लाना एस बात को इंगित करता है की वास्तव में कोई सार्थक पहल ऐसे लोगों की ओरे से नहीं हो रही जो वास्तव में सबसे अधिक योगदान प्रस्तुत कर सकते हैं.
भारत की ओर से कड़े शब्दों में यह कहा जाना की हम अपनी कार्बोन उत्सर्जन रेटिंग में फिलहाल कोई कमी लाने का वादा नहीं करते ,एक निर्भीक और सही पहल है क्योंकि भारत एक विकास शील देश है जहाँ की कार्बोन उत्सर्जन क्षमता अभी भी विश्व औसत से कम है और यहाँ उद्योग आदि स्थापित करने की प्रचुर संभावनाएं हैं ऐसे में किसी प्रकार का वादा हमारे विकास को प्रभावित कर सकता है. यह अवश्य है की हम भारत के लोग प्रकृति को अपना आराध्य मानते हैं और भारत वर्ष में बहुत से लोगों,संस्थाओं और सरकार द्वारा पर्यावरण को सुरक्षित रखने के उद्देश्य से विब्ह्हिना अभियान चलाये जा रहे हैं.
इसके अतिरिक्त हम अपने देश में स्थित उद्योगों में सी.डी.एम् . तकनीकी और अन्य नविन तकनीकी का उपयोग कर कार्बोन ट्रेडिंग के द्वारा आया भी अर्जित कर रहे हैं.अब हमें भी अपनी जिम्मेदारी को समझना होगा और अपने व्यक्तिगत स्तर पर ही पर्यावरण को सुरक्षित रखने के लिए प्रयास करना होगा.कुछ बहुत ही आसन उपाय अपना कर जैसे पोलीबग्स का प्रयोग बंद कर,पेड़ लगाकर,साफ सफाई रखकर हम अपने आस पास का पर्यावरण स्वच्छ बना सकते हैं.यदि हम ऐसा करते हैं तो हमें होने वाले लाभ बढ़ जायेंगे और कोपेनहेगेन जैसे सम्मलेन में हमारा देश अपनी बात को निर्भीक होकर कहता रहेगा.
प्रेषक:
रवि नितेश
(Published with dainik Jagran, Gorakhpur Edition)
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