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Sunday, December 5, 2021

अपशिष्ट प्रबंधन में महत्वपूर्ण नागरिक भागीदारी

By Ravi Nitesh2:02 PM

Published :

https://www.jagran.com/news/national-citizens-participation-in-waste-management-jagran-special-22181686.html 

स्वच्छ भारत अभियान के 7 वर्ष पूरे होने के साथ ही प्रधानमंत्री द्वारा स्वच्छ भारत मिशन (शहरी) -द्वितीय चरण एवं अटल नवीकरण एवं शहरी परिवर्तन- द्वितीय चरण के अंतर्गत लक्ष्यों की घोषणा की जा चुकी है। 2 अक्टूबर को महात्मा गाँधी के जन्मदिवस पर 2014 में आरम्भ किये गए स्वच्छ भारत अभियान को देश का लगभग प्रत्येक नागरिक बखूबी जानता है। खुले में शौच से मुक्ति और ठोस कचरा प्रबंधन के मुख्य उद्देश्यों के अंतर्गत और संयुक्त राष्ट्र द्वारा घोषित सतत विकास उद्देश्य 6 से सम्बंधित यह अभियान अपना प्रथम चरण पूरा कर चुका है और इस दौरान रिकॉर्ड संख्या में शौचालयों के निर्माण ने स्वच्छता क्रांति सफल कर दी है। भारत जो कि सबसे बड़ी संख्या में खुले में शौच करने वाले लोगों का देश था, उसमें  लगभग 10.7 करोड़ शौचालयों के निर्माण द्वारा करोड़ों परिवारों को एक निजी और सुरक्षित शौचालय मिला। गाँधी जी स्वतंत्रता आंदोलन के प्रहरी होने के साथ ही ,स्वच्छता के भी प्रहरी थे और इसलिए उनके जन्मदिवस पर आरम्भ हुआ स्वच्छता अभियान देश के जनजीवन की दशा में सुधार हेतु एक महत्वपूर्ण कदम है।    

अब जबकि स्वच्छ भारत अभियान देश के हर जिले, तहसील, ब्लाक और गाँव तक पहुँच चुका है और 6 लाख से अधिक गाँव खुले में शौच से मुक्ति पा चुके हैं तब प्रधानमंत्री के सम्बोधनों में अब द्वितीय चरण के लक्ष्यों में अपशिष्ट प्रबंधन जिसमे शहरी क्षेत्रों को कचरा मुक्त किये जाने, दूषित पानी को देश की किसी भी नदी में मिलने से रोके जाने की बात कहे जाना महत्वपूर्ण है। दरअसल वैश्विक शहरीकरण में भारत का स्थान प्रमुख है और स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद से भारत में शहरीकरण की गति लगातार बढ़ती जा रही है। आँकड़ों के अनुसार 1901 में 11.4 प्रतिशत की शहरी जनसंख्या वाला ये देश अब 2017 तक लगभग 34 प्रतिशत की शहरी जनसंख्या वाला देश बन चुका है और संयुक्त राष्ट्र की एक रिपोर्ट के अनुसार 2030 तक भारत की लगभग 40.7 प्रतिशत आबादी शहरी क्षेत्रों में रह रही होगी। ऐसे में निश्चित ही स्वच्छ भारत के द्वितीय चरण में शहरी क्षेत्रों पर ध्यान दिया जाना और उनमें अपशिष्ट प्रबंधन को लेकर योजना को मजबूत किये जाने पर बल देना होगा। इसमें न सिर्फ नीतिगत निर्णय बल्कि लोगों के व्यावहारिक परिवर्तनों को भी प्रमुखता के साथ शामिल करना होगा। इस व्यावहारिक परिवर्तन में हमें अपना व्यवहार बदलना होगा और अपनी जीवनशैली में बदलाव कर स्वयं के द्वारा उत्पादित अपशिष्ट की मात्रा न्यूनतम करने पर विचार करना होगा। 




आज हम अपने समाज को सभ्य और सुसंस्कृत कहते हैं लेकिन अपने घरों से अनियंत्रित कूड़ा कचरा निकालते हैं, कई बार उपयोग में लायी जा सकने वाली वस्तुएं भी इस कचरे का हिस्सा बना दी जाती हैं, बिना यह जाने कि हमारे द्वारा उत्पादित किये गए इस कचरे का प्रबंधन कितना मुश्किल है। 

भारत विश्व के सबसे बड़े कचरा उत्पादक देशों में एक है। भारत में प्रतिवर्ष लगभग 62 मिलियन टन कचरा निकलता है।  इस आंकड़े के हिसाब से लगभग प्रतिदिन 1.7 लाख टन कचरा निकल रहा है। अकेले राजधानी दिल्ली में लगभग 1300 टन कचरा प्रतिदिन एकत्र होता है। जाहिर है कि पहले ही ज़मीन की कमी और जनसँख्या घनत्व की अधिकता से जूझती दिल्ली के पास सिवाय कूड़े के पहाड़ बनाने के दूसरा रास्ता नहीं दिखता। प्रधानमंत्री के सम्बोधन में द्वितीय चरण के लक्ष्यों की बात करते हुए, इस कूड़े के पहाड़ का सन्दर्भ भी आ चुका है। राजधानी के ओखला, भलस्वा और ग़ाज़ीपुर नाम की जगहों पर कूड़े के इतने बड़े बड़े पहाड़ बने हुए हैं कि कोई अनजान पर्यटक दूर से देखकर इनको सही का पहाड़ ही समझ बैठे , पर उसके पास पहुँचते पहुँचते जब उसके ऊपर मंडराते चील कौवे और उससे आती बदबू से सामना होता है, तो हकीकत सामने आ जाती है और ऐसा लगता है कि शायद दिल्ली अपने ही निकाले कचरे में दफ़न हो रही है। 
ऐसा नहीं है कि इसके लिए सरकारों ने कुछ किया नहीं, दरअसल कई बार इस विशालकाय पहाड़ पर एकत्र कूड़े से कुछ उपयोगी सामान (जैसे सड़क और मकान निर्माण में काम आ सकने वाली वस्तुएं) बनाने की योजना बनी , कई बार इनसे निकलने वाले गैस को ऊर्जा संयंत्रों द्वारा उपयोगिता में लाये जाने के बारे में काम हुआ और कभी इनको ढँक कर इनके ऊपर घास उगाकर हरा भरा दिखाए जाने का प्रयास हुआ ,पर लगातार बढ़ती कूड़े की मात्रा इस पर हमेशा भारी बनी रही।  

इस तरह के कूड़े और इसमें मौजूद हानिकारक तत्वों का हवा के माध्यम से वातावरण में फैलना, इसके जल जाने पर भारी मात्रा में हानिकारक गैसों का वातावरण प्रदूषित करना, जानवरों द्वारा कई बार इसको खा लिया जाना और बीमार पड़ जाना , इसके स्थानीय मिट्टी और जल स्तर में मिश्रित होने की दशा में खतरों का उत्पन्न होना, कई बार भार न संभाल पाने की स्थिति में बड़ी मात्रा में कूड़े का धसक जाना और चपेट में आने वाले लोगों, कर्मियों, मकानों और मशीनों को नुकसान पहुंचाना आदि तमाम इसके कुप्रबंधन से होने वाले दुष्प्रभाव हैं।   
यह समस्या केवल राजधानी की नहीं है, बल्कि हर छोटे बड़े शहर और कस्बों की है जहाँ कचरा निकल तो रहा है पर उसका समुचित प्रबंधन अनुपस्थित है।  एक अंतर्राष्ट्रीय एजेंसी के अनुसार प्रतिवर्ष विश्व भर में 4 लाख से 10 लाख लोगों की मृत्यु कूड़े के कुप्रबंधन के कारण होती है। हालांकि स्वच्छ भारत अभियान के वर्तमान चरण में इस तरह के प्रबंधन के लिए काम किया जा रहा है और कई शहरी क्षेत्रों में घर घर जाकर कूड़ा एकत्र करना और स्रोत स्थान पर ही उसके पृथक्करण किये जाने का काम चल रहा है पर इसके दुष्प्रभावों को रोकने के लिए सरकारी और गैर सरकारी दोनों स्तर पर मिलकर काम करना होगा जिसमें नागरिकों की भूमिका सबसे अहम होगी। साथ ही हर स्तर पर रियूज़ ,रिड्यूज़, रिसाइकिल यानी पुनः प्रयोग ,कम प्रयोग और पुनर्चक्रण को लागू करना होगा।    

स्वतंत्र भारत में शुरू हुए संपूर्ण स्वच्छता अभियान और निर्मल भारत अभियान से होते हुए स्वच्छ भारत अभियान तक देश ने स्वच्छता की दिशा में जो कदम बढाए हैं ,उनका अनवरत जारी रहना ही भविष्य को सुरक्षित रखना है। जैसे जैसे देश आर्थिक विकास की तरफ आगे बढ़ रहा है,वैसे वैसे हमें कचरा प्रबंधन के महत्वपूर्ण बिंदुओं पर भी ध्यान देना होगा। सरकार द्वारा इस दिशा में जो कार्य किये जा रहे हैं ,उनकी सफलता में नागरिक भागीदारी बेहद अहम है और जिस प्रकार हम कार्बन पदचिन्हों को करने का प्रयास कर रहे हैं ,उसी प्रकार व्यक्तिगत अपशिष्ट पदचिन्हों को कम करके इसमें योगदान दिया जा सकता है। प्रधानमंत्री का कथन इस दिशा में महत्वपूर्ण है कि 'हमें याद रखना होगा कि स्वच्छता बनाये रखना सिर्फ एक दिन, एक पखवाड़े ,एक साल या कुछ लोगों के लिए नहीं है , बल्कि यह हर दिन, हर पखवाड़े, हर साल सभी के लिए एक मेगा अभियान है और एक पीढ़ी से दूसरी तक चलने वाला एक सतत कार्यक्रम।' 

रवि नितेश 
(लेखक एक सामाजिक कार्यकर्ता हैं और शांति, मानवाधिकार एवं पर्यावरण के मुद्दों पर स्वतंत्र लेखन से जुड़े हुए हैं )
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