Published :
https://www.jagran.com/news/national-citizens-participation-in-waste-management-jagran-special-22181686.html
स्वच्छ भारत अभियान के 7 वर्ष पूरे होने के साथ ही प्रधानमंत्री द्वारा स्वच्छ भारत मिशन (शहरी) -द्वितीय चरण एवं अटल नवीकरण एवं शहरी परिवर्तन- द्वितीय चरण के अंतर्गत लक्ष्यों की घोषणा की जा चुकी है। 2 अक्टूबर को महात्मा गाँधी के जन्मदिवस पर 2014 में आरम्भ किये गए स्वच्छ भारत अभियान को देश का लगभग प्रत्येक नागरिक बखूबी जानता है। खुले में शौच से मुक्ति और ठोस कचरा प्रबंधन के मुख्य उद्देश्यों के अंतर्गत और संयुक्त राष्ट्र द्वारा घोषित सतत विकास उद्देश्य 6 से सम्बंधित यह अभियान अपना प्रथम चरण पूरा कर चुका है और इस दौरान रिकॉर्ड संख्या में शौचालयों के निर्माण ने स्वच्छता क्रांति सफल कर दी है। भारत जो कि सबसे बड़ी संख्या में खुले में शौच करने वाले लोगों का देश था, उसमें लगभग 10.7 करोड़ शौचालयों के निर्माण द्वारा करोड़ों परिवारों को एक निजी और सुरक्षित शौचालय मिला। गाँधी जी स्वतंत्रता आंदोलन के प्रहरी होने के साथ ही ,स्वच्छता के भी प्रहरी थे और इसलिए उनके जन्मदिवस पर आरम्भ हुआ स्वच्छता अभियान देश के जनजीवन की दशा में सुधार हेतु एक महत्वपूर्ण कदम है।
अब जबकि स्वच्छ भारत अभियान देश के हर जिले, तहसील, ब्लाक और गाँव तक पहुँच चुका है और 6 लाख से अधिक गाँव खुले में शौच से मुक्ति पा चुके हैं तब प्रधानमंत्री के सम्बोधनों में अब द्वितीय चरण के लक्ष्यों में अपशिष्ट प्रबंधन जिसमे शहरी क्षेत्रों को कचरा मुक्त किये जाने, दूषित पानी को देश की किसी भी नदी में मिलने से रोके जाने की बात कहे जाना महत्वपूर्ण है। दरअसल वैश्विक शहरीकरण में भारत का स्थान प्रमुख है और स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद से भारत में शहरीकरण की गति लगातार बढ़ती जा रही है। आँकड़ों के अनुसार 1901 में 11.4 प्रतिशत की शहरी जनसंख्या वाला ये देश अब 2017 तक लगभग 34 प्रतिशत की शहरी जनसंख्या वाला देश बन चुका है और संयुक्त राष्ट्र की एक रिपोर्ट के अनुसार 2030 तक भारत की लगभग 40.7 प्रतिशत आबादी शहरी क्षेत्रों में रह रही होगी। ऐसे में निश्चित ही स्वच्छ भारत के द्वितीय चरण में शहरी क्षेत्रों पर ध्यान दिया जाना और उनमें अपशिष्ट प्रबंधन को लेकर योजना को मजबूत किये जाने पर बल देना होगा। इसमें न सिर्फ नीतिगत निर्णय बल्कि लोगों के व्यावहारिक परिवर्तनों को भी प्रमुखता के साथ शामिल करना होगा। इस व्यावहारिक परिवर्तन में हमें अपना व्यवहार बदलना होगा और अपनी जीवनशैली में बदलाव कर स्वयं के द्वारा उत्पादित अपशिष्ट की मात्रा न्यूनतम करने पर विचार करना होगा।