पर्यावरण दिवस (५ जून) मनाने के बाद हर साल शान्त हो जाने वली सरकारें और संगठन इसके वास्तविक महत्त्व को नकार रहे हैं और मात्र अपनी प्रतिष्ठा और खाना पूरी के लिए ही ऐसा करते हुए मालूम हो रहे हैं. ऐसे बहुत से छोटे नियम बनाए जा सकते है और लोगों को सुविधाएं देकर जागरुक बनाने का काम किया जा सक्ता है जो कम पैसे मे और स्थानीय स्तर पर लिया जा सकता है . स्थानीय अधिकारियों को ऐसे संगठ्नो को सम्पर्क मे लेकर स्थानीय योजनाये बनानी चाहिए और ऐसा होना एक बडा बदलाव ला सकता है. पर्यावरण पर काम करने का मतलब सिर्फ ये नही कि आपको सरकार की ओर से एक भारी भरकम राशि उपलब्ध कराई जाए जिसके बाद ही आप कोई कार्य करें. वास्तव मे हमारी अपनी पहल होनी चाहिए अपने शहर और गांव को पर्यावरण के प्रति जागरुक करने का. तमाम ऐसी योजनाएं और तरीके अपनाने का जो वास्तव मे अत्यन्त उपयोगी सिद्ध हो सकते हैं और इसमे उन तमाम् लोगों का सहयोग लिया जा सकता है जो अपने शहर और गांव के विकास के प्रति प्रतिबद्ध हैं, ऐसे लोग जिन्हे वास्तव मे प्रकृति से प्रेम है और जो इसको नष्ट होने से बचाना चाह्ते हैं और यदि हम ऐसी शुरुआत कर सकें तो ये सिर्फ एक शहर के लिए नया बदलाव नही होगा बल्कि विश्व भर के लिए लाभदायक होगा क्योंकि हम कहीं ना कहीं कार्बन उत्सर्जन को कम करने मे सहयोग प्रदान करेंगे.
क्या हम सब तैयार हैं एक नाई शुरुआत के लिए....
(Published in Dainik Jagran)
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