Ravi Nitesh

Menu
  • Home
  • Published Articles
  • Media Gallery
    • Photos
    • Videos
    • In News
    • Interviews
  • Social Actions
    • South Asia - Peace, Communal Harmony
    • National Integration, Human Rights, Democracy
    • Development, Sanitation and Others

Saturday, January 22, 2022

जैव विविधता (संशोधन) विधेयक के निहितार्थ

By Ravi Nitesh4:59 PM

रवि नितेश , पर्यावरण कार्यकर्ता 

Published: Dainik Jagran, National Edition 
---------------------

हालिया संपन्न शीतकालीन संसद सत्र के दौरान लोकसभा में जैव विविधता (संशोधन) विधेयक 2021 को प्रस्तुत किए जाने के बाद इस संदर्भ में कुछ आशंकाएं जताई गईं और अंतत: यह विधेयक एक संयुक्त संसदीय समिति को स्थानांतरित कर दिया गया। जैव विविधता (संशोधन) विधेयक दरअसल वर्तमान वैश्विक परिप्रेक्ष्य में मूल अधिनियम के एक संवर्धित बिल के रूप में लाया गया और इसकी आवश्यकता क्यों पड़ी, यह समझना आवश्यक है

--------------------- 

पांच जून 1992 को ब्राजील के रियो डी जेनेरियो में आयोजित पृथ्वी शिखर सम्मेलन के दौरान संयुक्त राष्ट्र जैव विविधता सम्मेलन में शामिल पक्षकार देशों में भारत भी था। इसी क्रम में भारतीय संसद द्वारा जैव विविधता अधिनियम, 2002 लाया गया, जिसके मूल अधिनियम के कुछ प्रमुख प्रविधानों में स्थानीय स्तर पर जैव विविधता प्रबंधन समितियों से लेकर राज्य स्तरीय बोर्ड और केंद्रीय स्तर तक जैव विविधता बोर्ड की स्थापना, जैव विविधता वाले क्षेत्रों में शोध एवं वाणिज्यिक गतिविधियों को लेकर प्रविधान एवं इन माध्यमों के जरिये भारतीय औषधीय पौधों और पद्धतियों का संरक्षण व संवर्धन किया जाना था। किंतु कालांतर में इसके जितने उत्साहवर्धक परिणाम मिलने चाहिए थे वो नहीं मिल सके। 

वर्ष 2002 में इस अधिनियम के आने से लेकर 2016 तक देश में मात्र 9.7 हजार जैव विविधता प्रबंधन समितियां ही बनाई जा सकी थीं। जब राष्ट्रीय हरित प्राधिकरण ने 2016 में इन आंकड़ों को लेकर चिंता जताई तो स्थानीय संस्थाओं, संगठनों आदि को जैव विविधता रजिस्टर बनाने के लिए शामिल किया गया और 2016 से 2021 के दौरान समितियों के आंकड़े बढ़कर लगभग 2.4 लाख हो गए। इसी तरह 2021 तक भारत में कुल 22 घोषित जैव विविधता विरासत स्थलों में 18 विरासत स्थलों को केवल 2014 से 2021 के बीच घोषित किया गया है। स्पष्ट है कि इस क्षेत्र में व्यापक समृद्धि के अवसर हैं।  




भारत एक बहुविविधता वाला देश है और जैव विविधता के मामले में विश्व के अग्रणी देशों में एक है। विश्व के मात्र 2.4 प्रतिशत क्षेत्रफल वाला यह देश विश्व की लगभग आठ प्रतिशत पादप एवं जंतु प्रजातियों की प्रवास भूमि है। यहां प्राचीन काल से ही विभिन्न जातियां, कबीले, संस्कृतियां निवास करती रहीं और इसलिए यह देश एक समृद्ध पारंपरिक ज्ञान का स्रोत भी है जिसमें जंगल, पर्वत, नदियों के आसपास रहने वाले समुदाय और भारत के ग्राम्य क्षेत्रों के निवासी आज भी सैकड़ों वर्षों से चले आ रहे पारंपरिक वानस्पतिक और औषधीय ज्ञान से लाभ प्राप्त करते हैं। माना जाता रहा है कि इन पारंपरिक पद्धतियों का वैज्ञानिक विधि से संकलन और शोध एक अत्यंत समृद्ध कोष की स्थापना कर सकता है जिससे आधुनिक औषधि विज्ञान के क्षेत्र में मानव कल्याण सुनिश्चित किया जा सकता है। 

हाल के दशकों में दुनियाभर में हुई वैज्ञानिक प्रगति, इंटरनेट और डिजिटल सेवाओं का विस्तार, भारत में परंपरागत औषधीय ज्ञान जैसे आयुर्वेद, होमियोपैथ, यूनानी, सिद्ध, योग आदि को मानक ज्ञान के रूप में विस्तार, जैव तकनीकी में प्रगति और वैश्विक समुदाय का इनकी ओर झुकाव भारत की जैव विविधता को एक व्यापक वैज्ञानिक व आर्थिक स्रोत के रूप में परिलक्षित करता है। एक देश के रूप में भारत के पास इस अवसर का उचित लाभ लेकर राष्ट्रीय हितों या मूल अधिनियम के उद्देश्यों से भटके बिना एक सुगम वातावरण तैयार करना ही सही निर्णय है और इसके लिए 20 वर्ष पुराने जैव विविधता अधिनियम में संशोधन आवश्यक है। इस विधेयक के माध्यम से मूल उद्देश्यों की प्राप्ति की दिशा में कुछ सुधार किए गए हैं। इनमें अनुपालन बोझ को कम किए जाने, प्रक्रिया को सरल एवं विकेंद्रीकृत बनाए जाने, इन क्षेत्रों में शोध एवं वाणिज्यिक गतिविधियों के लिए एक उपयुक्त परिवेश तैयार करने तथा स्थानीय समुदायों के मध्य अधिक लाभ पहुंच सके, इन विषयों के संदर्भ में एक सशक्त राष्ट्रीय नीति का प्रारूप तैयार किया गया है। 

इस विधेयक में जैव विविधता वाले क्षेत्रों में शोध आदि के लिए न केवल मूल अधिनियम में वर्णित वैद्य या हकीम, बल्कि आयुष पद्धतियों की शिक्षा प्राप्त पंजीकृत चिकित्सकों को भी जैव विविधता बोर्ड से बिना शुल्क और बिना पूर्व अनुमति के शोध करने की अनुमति प्रस्तावित है। ऐसा किया जाना भारतीय पद्धतियों को बढ़ावा देने और पारंपरिक पद्धतियों को वैज्ञानिक महत्व प्रदान करने का कार्य करेगा और शोधार्थियों को यह क्षेत्र आकर्षित कर सकेगा। इसके साथ ही नए क्षेत्रीय पेटेंट केंद्रों की स्थापना किए जाने के लक्ष्य हैं जो बौद्धिक संपदा के अधिकार को बढ़ावा देंगे और विभिन्न शोध पत्रों, जैव तकनीकियों को पंजीकृत कर सकेंगे। 

दुनियाभर के देश जैव विविधता के संरक्षण और इसके आर्थिक उपयोग के बीच संतुलन स्थापित कर रहे हैं। ऐसे में अभी तक इसके आर्थिक उपयोग से वंचित रहना भारत के लिए उचित नहीं है। एक अनुमान के मुताबिक भारत अकेले समुद्री प्रवालों से 1400 करोड़ रुपये अर्जित कर सकता है। इसी तरह भारतीय वनों से सकल आय दुनिया के तमाम देशों से बहुत कम है, जबकि इसकी आय क्षमता संरक्षण के साथ सालाना अरबों रुपये की है। ऐसे में जैव विविधता में निवेश और तकनीकी सहयोग को बढ़ावा देना आवश्यक है। मूल अधिनियम में प्रतिबंधित विदेशी निकायों की शर्तों को संशोधन विधेयक में अधिक स्पष्टता के साथ भारतीय कंपनी अधिनियम 2013 के खंड दो की धारा 42 के अंतर्गत आने वाले विदेश नियंत्रित निकाय द्वारा परिभाषित किया गया है और इस तरह विदेशी निवेश को केवल -मेक इन इंडिया- की शर्त पर ही प्रभावी बनाया जाना आर्थिक और तकनीकी तौर पर उद्देश्यों की पूर्ति में सहायक हो सकेगा। 

इस संशोधन विधेयक के प्रविधानों में जंगली औषधीय पौधों में से उपयोगी हो सकने वाले पौधों को कृषि द्वारा तैयार किए जाने की बात भी की गई है, ताकि वाणिज्यिक उपयोग के साथ ही संरक्षण और स्थानीय समुदायों को लाभ के अवसर प्राप्त हो सकें। साथ ही निर्णय प्रक्रिया को सुगम और तीव्र बनाने हेतु जैव विविधता बोर्ड में मूल अधिनियमानुसार केंद्रीय सरकार द्वारा नियुक्त सर्वाधिक सशक्त अधिकारी, बोर्ड अध्यक्ष के साथ ही संशोधित प्रविधानों में सदस्य सचिव पद की स्थापना और उसके अधिकारों से बोर्ड की शक्तियों का विकेंद्रीकरण संभव हो सकेगा। इसके अलावा कुछ और अधिक विभागों के प्रतिनिधित्व को शामिल किया जाना जैव विविधता पर होने वाले निर्णयों को अधिक तर्कसंगत और टिकाऊ बनाएगा। संयुक्त संसदीय समिति के सामूहिक प्रतिनिधित्व द्वारा यदि यह विधेयक कुछ थोड़े परिवर्तन के साथ अधिनियम बना दिया जाता है, तो आने वाले वर्षों में राष्ट्रीय प्रगति एवं महत्व को सुनिश्चित करने वाला हो सकता है।

Email ThisBlogThis!Share to TwitterShare to Facebook
Newer Post Older Post Home

About Me

->Indo-Pak Peace Will Bring Prosperity To South Asia

->Last Leg of Voting & Real Agenda of Eastern Uttar Pradesh

->India-Pakistan: Shared Heritage, Shared Future for a hatred free-violence free subcontinent

->Educational Innovations through effective governance would be key to Sustainable Development Goals

->Indo-Pak Dialogue for Ceasefire Can Save Lives and Future of Subcontinent

->Dialogue a must to prevent escalations along volatile India-Pakistan border

->Ceasefire agreements can help save Indo-Pak relations

Copyright © Ravi Nitesh | Designed by Abhishek Kumar