एकीकृत विमर्श की राह खोजता भारत का शहरी वायु प्रदूषण संकट
मानसून के बाद ठण्ड आने की आहट के साथ ही दिल्ली में प्रदूषण की चर्चा एक बार फिर होने लगी है। पक्ष - विपक्ष अपनी अपनी तरह से इस विषय पर आवाज़ उठा रहे हैं। लेकिन इस महत्वपूर्ण विषय पर जिसमें हर एक व्यक्ति का प्रभावित होना निश्चित है, और यह समस्या केवल दिल्ली तक सीमित नहीं है ,इस पर संयुक्त विमर्श दिखाई नहीं पड़ता।
भारत के शहर यहाँ की सामाजिक बनावट के अनुसार उदासीन न होकर, जीवंत और चहल-पहल वाले केंद्र के रूप में जाने जाते हैं। लेकिन अब ये शहर वायु प्रदूषण के खतरे से जूझ रहे हैं जिससे घरों, स्कूलों और कार्यस्थलों में सार्वजनिक स्वास्थ्य के लिए गंभीर खतरा उत्पन्न हो रहा है। समस्या का पैमाना चिंताजनक है, जिसमें कई भारतीय शहर दुनिया के सबसे प्रदूषित शहरों में शुमार हैं और इन सबके बावजूद सामजिक राजनीतिक उदासीनता इतनी है कि हाल में सम्पन्न संसदीय चुनावों में पर्यावरण या साफ़ हवा कोई विशेष मुद्दा नहीं बन सका था।
भारत के शहरी वायु प्रदूषण संकट के पीछे अनेक कारकों का आपस में एक जटिल सम्बन्ध है। वाहनों से निकलने वाला उत्सर्जन, औद्योगिक गतिविधियाँ, निर्माण कार्यों से निकलते धूल और अन्य पदार्थों के कण और कृषि अपशिष्टों को जलाना, ये सभी हवा में मौजूद जहरीले मिश्रण में योगदान करते हैं। भारतीय सड़कों पर कारों, बसों और दोपहिया वाहनों की बढ़ती संख्या ने पार्टिकुलेट मैटर और हानिकारक गैसों में काफ़ी बढ़ोत्तरी की है। औद्योगिक उत्सर्जन, विशेष रूप से बिजली संयंत्रों, स्टील मिलों और रिफाइनरियों से होने वाला उत्सर्जन की भी, प्रदूषण में, एक महत्वपूर्ण भूमिका है। इंडिया क्लीन एयर सम्मिट के बेंगलुरु में हाल ही में सम्पन्न एक अधिवेशन में बताया गया कि शहरी प्रदूषण को प्रभावित करने वाले बहुत से कारक शहरों के किनारे पर बसे अन्य छोटे शहर और अर्ध शहरी क्षेत्र में भी हैं। इसलिए केवल किसी शहर विशेष के नगरीय निकाय अकेले ही शहरी प्रदूषण की रोकथाम नहीं कर सकते , बल्कि इसके लिए समेकित नीति बनाने की आवश्यकता है।
सेंटर फॉर रिसर्च ऑन एनर्जी एंड क्लीन एयर की वर्ष 2024 की पहली छमाही की रिपोर्ट के अनुसार दिल्ली भारत का तीसरा सबसे प्रदूषित शहर रहा, जहाँ PM 2.5 की मात्रा विश्व स्वास्थ्य संगठन द्वारा निर्धारित मानक से 20 गुना अधिक पायी गयी। रिपोर्ट में बताया गया कि भारत के 10 सबसे प्रदूषित शहरों में 3 हरियाणा , २ राजस्थान, 2 उत्तर प्रदेश एवं दिल्ली,असम और बिहार के 1 - 1 शहर शामिल हैं। यह आश्चर्य है कि देश का सबसे प्रदूषित शहर उत्तर भारत का नहीं बल्कि असम - मेघालय सीमा पर स्थित बिरनिहात पाया गया।
वायु प्रदूषण के रोकथाम की सबसे महती आवश्यकता इसके विनाशकारी स्वास्थ्य परिणामों के कारण हैं। प्रदूषित हवा के संपर्क में आने से कई तरह की बीमारियाँ होती हैं, जिनमें श्वसन संक्रमण, हृदय रोग, स्ट्रोक, फेफड़ों का कैंसर और समय से पहले मृत्यु शामिल हैं। वायु प्रदूषण के प्रभावों के प्रति बच्चे विशेष रूप से संवेदनशील होते हैं और उनके संज्ञानात्मक विकास और फेफड़ों की कार्यक्षमता प्रभावित हो सकती है। आंकड़ों के अनुसार प्रतिवर्ष पूरी दुनिया में लगभग 80 लाख लोग वायु प्रदुषण से सम्बंधित कारणों से अपनी जान गँवा रहे हैं और इसका पचास प्रतिशत अकेले भारत और चीन की संख्या है। इसके आर्थिक कारण भी कम महत्वपूर्ण नहीं है क्यूंकि वर्ल्ड बैंक की रिपोर्ट के अनुसार वायु प्रदूषण के कारण समय से पहले होने वाली मृत्यु और रोगों के कारण भारत को एक साल में तकरीबन 36 बिलियन डालर (लगभग २.7 लाख करोड़ रुपये) का नुक्सान हो रहा है।
हालांकि वायु प्रदूषण संकट की गंभीरता को समझते हुए, भारत सरकार ने इस समस्या के समाधान के लिए कई पहलों को लागू किया है। इनमें राष्ट्रीय स्वच्छ वायु कार्यक्रम (NCAP) शामिल है, जिसका उद्देश्य शहरों में पार्टिकुलेट मैटर प्रदूषण कम करना है। इसके अतिरिक्त, सरकार ने वाहनों से होने वाले उत्सर्जन को कम करने के लिए सार्वजनिक परिवहन, प्राकृतिक गैस और इलेक्ट्रिक वाहनों के उपयोग को बढ़ावा दिया है।
प्रभावी वायु प्रदूषण नियंत्रण उपायों को लागू करने में चुनौतियों भी कम नहीं हैं। तेजी से बढ़ते शहरीकरण, आर्थिक विकास और ऊर्जा की बढ़ती मांग ने बुनियादी ढांचे और संसाधनों पर दबाव डाला है। इसके अलावा, अनौपचारिक आर्थिक संरचना में प्रदूषण के कारकों को अक्सर विनियमित करना मुश्किल होता है।
भारत के शहरी वायु प्रदूषण संकट से निपटने के लिए एक बहुआयामी दृष्टिकोण की आवश्यकता है। पर्यावरण मानकों के अनुपालन को सुनिश्चित करने के लिए सरकारी नीतियों और नियमों को मजबूत किया जाना एवं निजी वाहनों पर निर्भरता कम करने के लिए सार्वजनिक परिवहन और बुनियादी ढांचे में निवेश आवश्यक है। स्वच्छ प्रौद्योगिकियों और नवीकरणीय ऊर्जा स्रोतों को बढ़ावा देने से औद्योगिक उत्सर्जन को कम करने में मदद मिल सकती है। लेकिन सबसे महत्वपूर्ण है सार्वजनिक जागरूकता और भागीदारी। नागरिकों को स्वच्छ हवा की मांग करने और सरकारों को जवाबदेह ठहराने के लिए सशक्त बनाया जाना चाहिए। समुदाय-आधारित सुझावों को स्थानीय स्तर पर प्रदूषण कम करने में विचार विमर्श का हिस्सा बनाया जाना चाहिए। लीक से अलग हटकर भी सुझावों और विचारों पर ध्यान देने की ज़रूरत है। दिल्ली सरकार का ऑड इवन फार्मूला ऐसा ही विचार था। स्कूलों,कालेजों और कार्यालयों के समय में अंतर किया जाना, बैटरी आधारित इ रिक्शा को विनियमित किया जाना, एक प्रकार के कार्य करने वाले कार्यालयों को एक तरह की टाइमिंग और फ्लेक्सी टाइमिंग के लिए बढ़ावा दिया जाना, कुछ निश्चित संख्या से अधिक लोगों का एक स्थान पर कार्य किये जाने पर कर्मचारी बसों की सुविधा बढ़ाया जाना आदि विचारों पर ध्यान दिया जाना आवश्यक है। प्रदूषण की रोकथाम के लिए किसी एक सरकार या विभाग या मंत्रालय नहीं,बल्कि सबको मिलकर काम करना ही प्रभावी हो सकता है।
रवि नितेश
(लेखक मिशन भारतीयम के संस्थापक हैं और शांति, पर्यावरण तथा विकास के विषयों से जुड़े हुए हैं )