होली का सामाजिक आधार
विभिन्न वैज्ञानिक और अध्यात्मिक तथ्यों का समावेश होली ने स्वयं प्रदर्शित किया है ,चाहे वह ग्रीष्म ऋतू का स्वागत करना हो या लाभकारी रंगों एवं औषधि रंगों का प्रयोग हो परन्तु वर्तमान समय में एक सामाजिक परिकल्पना भी उसका एक आधार प्रस्तुत कर रही है जो अपने आप में एक महान दर्शन समेटे हुए है . ये है छुआ छूत और भेद भाव का अंत.
आज एक ऐसे समय में जब हमारे देश में विकास के नाम पर वास्तविक रूप से सभ्य और आधुनिक विचार धारा को अपनाये जाने के बजाय जाति, धर्म और क्षेत्र के नाम पर विभाजन कारी शक्तियां अपना लाभ अर्जित कर रही हैं तब हमें होली के सामाजिक दर्शन को समझने की आवश्यकता है जिसमे रंगों में रंगे हुए लोगों के बीच कोई भेद नहीं रह जाता चाहे वो किसी भी धर्म जाति और क्षेत्र के हों . यह मानव मात्र की पहचान सिद्ध करते हुए सबके लिए समानता का दर्शन देने का त्यौहार है.
आवश्यकता है इस त्यौहार को मात्र एक दिन का आनंद न मानकर इसके सामाजिक और दार्शनिक स्वरुप पर चिंतन करने और उसे अपने जीवन में अपनाकर सम भाव स्थापित करने का . यदि आप ऐसा करते हैं तो वास्तव में आप होली को उसका वास्तविक सम्मान प्रदान कर रहे हैं ,जो उसे सदैव जीवंत और गुना पूर्ण बनाये रखेगा .
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