समाज मे बहुत से शिक्षित और बुद्धिजीवी वर्ग का होना सदैव ऐसे समाज के लिए गौरव की बात होती है परन्तु कभी कभी ये वर्ग भी कुछ अत्यन्त संवेदनशील मुद्दों पे अपनी मूक स्वीकृति प्रदान करते हुए किसी प्रकार के विरोध का साहस नही कर पता , कुछ ऐसा ही बाल मजदूरों के साथ हुआ है और इसको नियति मान लेना ही ऐसे जिम्मेदार लोगों का सबसे बडा दोष है .
हमारे समाज मे हर जगह आज भी आपको बच्चों पे होते हुए जुल्म, उनका शोषण , मजदूरी और बेगार दिखाई पड सकते है और हमारे लिए येह सब देखना इतना आम हो चुका है कि हम इसको एक सामान्य सी बात मानकर आगे बढ जाते हैं. यद्यपि ये सभी मुद्दे अलग अलग हैं फिर भी एनका बाल वर्ग से जुड़ाव होने के कारण ये अत्यन्त महत्वपुर्ण हो जाते हैं .
आंकरो के अनुसार वर्तमान मे भारत मे लगभग ८० लाख बाल मजदूर हैं जबकि बाल श्रम अधिनियम के अन्तर्गत ऐसा निषिद्ध है . ऐसे मे क्या हम इसके दोषी नहीं ? क्या हम सरकार और प्रशासन पर ही येह जिम्मेदारी छोड कर मुक्त हो जाते हैं?
हमे खुद आगे बढ्ना होगा और इसके विरुद्ध अवाज उठानी होगी . समाज के सभी नाग्रिकों का ऐसा कर्तव्य है की वो अपने स्तर से इस अभिशाप के खिलाफ अभियान चलाएँ और ऐसे अभियान चलने वलों का हर सम्भव सहयोग करें क्योंकि ये समाज हमारा है और इसके दिन प्रतिदिन सुधारात्मक रुप मे प्रवेश करने से हमारी ही प्रगति होगी .
क्या आप आवाज उठायेंगे ?
published with Dainik Jagran, Gorakhpur Edition dated 19 JUNE 2010
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