शिक्षा का अधिकार मिल जाने और वास्तविक रुप मे उसके लागू होने का हाल वही है जो कमोबेश सरकार द्वारा लागू की गई हर अछी योजना का होता है . किसी बिल के लागू होने का उद्देश्य सिर्फ काग्ज़ों मे अपनी साख न बढाकर समाज के वास्तविक धरातल पर उसको अमल मे लाना होता है. आवश्यक शिक्षा जैसा प्रविधान दिखने मे भले ही अछा लगता हो पर वास्तव मे उसका लाभ मिल पाना अभी भी कठिन है. आज भी हम बाल मजदूरों को उसी तरह देख सकते है और निचले स्तर पर कोई परिवर्तन होता नही दिख रहा है जबकि योजनाएं निचले स्तर को ही सर्वाधिक लाभ पहुंचाने के उद्देश्य मे रखकर बनाई जाती हैं . इतना अवश्य है कि प्राथमिक विद्यालयों मे कुछ और दाखिले ऐसे छात्रों के हुए होंगे जो विद्यालय के समय मे विद्यालय न जाकर कहीं मजदूरी कर रहे होंगे और उनके नाम उपस्तिथि पन्जिका मे दर्ज होने का लाभ विद्यालय प्रबन्धन के लोग मिल बाँट कर ले रहे होंगे. सरकारें भी पन्जिका के ही अंकों को सही मानकर साक्षर लोगों की गणना कर रही होंगी और गर्व से स्कूली छात्रों की संख्या मे प्रतिशत वृद्धि का आंकरा मन्त्री जी द्वारा किसी मीडिया को दिए जा रहे साक्षात्कार मे बताया जा रहा होगा .
क्या फ़र्क पड़ता है ऐसे लोगों को जिनके जीवन स्तर का देश के वास्तविक जीवन स्तर से कहीं कोई तुलना करना भी अपराध है , फर्क वास्तव मे निचले स्तर के लोगों को ही पड़ता है और देश के वास्तविक लाभार्थी वही होने चाहिए . ऐसे मे दायित्व बनता है सामाजिक और बुद्धि जीवी वर्ग का जो अपनी पहल करे , निचले स्तर पर लोगों को जागरुक बनाए , उन्हे उनका हक लेना सिखाये . तभी योजनाओं का असली लाभ उनके वास्तविक पाने वाले लोगों तक पहुँच सकेगा.
जनता का जीवन स्तर सुधारने के लिए जनता को ही आगे आना होगा .
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