नन्हा मजदूर
सुबह से शाम तलक और
कभी कभार रात में भी ,
कंधो पे डाले बोझ थका हारा सा
चला जा रहा वो नन्हा मजदूर
जिसे नहीं मालूम अक्षरों का ज्ञान ,
जो कला और विज्ञानं की दुनिया से है अनजान ,
जो पढ़ सकता है दुनिया की आँखों को ,
जिसके पास हैं उम्मीद के बुलंद सितारे ,
जो देखता है ख्वाब औरों से अलग ,
उसका ख्वाब है की उसने आज दस रुपये ज्यादा कमाए ,
उसका ख्वाब है की उसने आज पुरियां खायीं ,
क्योंकि उसने परियां नहीं देखीं पर पुरियां देखी हैं ,
ईश्वर नहीं देखा पर मालिक देखा है ,
जिसकी कृपा पे मिल सकता है उसे वो सब कुछ ,
जो उसने ख्वाब में देखा है ,
और उसने देखी है परिवार की तंगी ,
एहसास है उसे ठण्ड की कांपकपाहट का ,
भूख और प्यास का
,वह पढ़ नहीं सकता पर शोध का विषय है
,वह कलाकार नहीं पर चित्रकार की कला वस्तु है ,
आज वास्तव में उसने दस रुपये ज्यादा कमाए थे ,
और पेट भर खाना खाया था ,
आज उसे कोई सपना नहीं आया था I
thank you।
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